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Monthly Archives: मई 2011

मैं और क्रिकेट

एक भारतीय होने के नाते मेरा भी यह फ़र्ज़ बनता है की, मै भी क्रिकेट को सबसे ज़्यादा प्यार करू. इसलिए हर भारतीय की तरह मै भी क्रिकेट का चहिता हूं. बचपन से ही हम क्रिकेट खेलते आये है. लेकिन १९९६ के विश्वकप के बाद मै टीवी पर भी क्रिकेट की मॅचेस देखने लगा. स्वदेश मे हुए इस विश्वकप मे भारत बूरी तरह से श्रीलंका से हार गया था और श्रीलंकाई टीम बहुत तेज़ी से उभर आई थी. विश्वकप के बाद भारतीय टीम मे बहुत से बदल किए गए. राहुल द्रविड और सौरव गांगुली इसी दौरान भारत के राष्ट्रीय टीम मे शामील हुए थे. सचिन तेंडुलकर तो पहले से ही टीम मे थे.
इन तीनों मे से मुझे सौरव गांगुली की बल्लेबाज़ी बहुत अच्छी लगती थी. ख़ास कर उस के ऑफ़साईड मे मारे हुए शॉट्स लाजवाब थे. सभी बल्लेबाजों मे मुझे सौरव गांगुली की ही बल्लेबाज़ी पसंद थी. मै ख़ुद एक दाहिने हाथ का बल्लेबाज़ था, लेकिन गांगुली की तरह बाए हाथ से बल्लेबाज़ी करने लगा. मै उस की नकल करने की कोशिश करता था. शुरूआत मे मुझे इस तरह बल्लेबाज़ी करना बहुत ही कठीन लगता था. लेकिन सोचता की, सौरव भी तो मूलत: दाहिने हाथ वाला है. अगर वो बाए हाथ से बल्लेबाज़ी कर सकता है तो मै क्यूं नहीं? धीरे धीरे मै बाए हाथ से बल्लेबाज़ी करने लगा. इसी दौरान मै गेंदबाज़ी की भी प्रॅक्टीस करता था. इसलिए साऊथ आफ़्रिका के एलन डोनाल्ड ने मुझे प्रभावित किया था. गेंदबाज़ी मे मै डोनाल्ड की नकल उतारता था. बाए हाथ से बल्लेबाज़ी करते रहने की वजह से मुझे दाहिने हाथ से बल्लेबाज़ी करनी बहुत ही आसान लगने लगा था. किसी चीज़ को अगर आप और कठिनाई मे जा कर सोचे तो पहले वाली चीज़ें आसान लगने लगती है. ठीक इसी तरह मेरे साथ भी हुआ. लेकिन मैने इस दौरान दाहिने हाथ से बल्लेबाज़ी के बारे मे सोचा नहीं.
क्रिकेट मे बल्लेबाज़ी से गेंदबाज़ी करना अधिक कठीन होता है. यह बात मुझे समझ मे आई थी. इसलिए बल्लेबाज़ी की बजाए मै गेंदबाज़ी की अधिक प्रॅक्टीस करता था. क्रिकेट मे समझो की गेंदबाज़ी मेरा पॅशन बन गया था. घर पर कोई नही होता तो, किसी दीवार को सामने रखकर वहां गेंदबाज़ी करता था. क्युंकी अकेला आदमी बल्लेबाज़ी की नही लेकिन गेंदबाज़ी की तो प्रॅक्टीस कर सकता है! ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मॅग्रा की गेंदबाज़ी ने मुझे प्रभावित किया था. साधारन गती से केवल लाईन और लेंथ के जोर पर आप कितनी अच्छी गेंदबाज़ी कर सकते है यह मैने मॅग्रा से सीखा. गांगुली रीटायर होने के बाद मैने बाए हाथ की बल्लेबाज़ी छोड दी. आज भी मै क्रिकेट मे गेंदबाज़ी को अपना पॅशन मानता हूं. कल बहुत दिन बाद मैने मैदान पर गेंदबाज़ी की थी. तब यह सब यादें ताज़ा हो गई.
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अजब प्रेम की गज़ब कहानी… अंतहीन (ओंतोहीन, অন্তহীন)

नये ज़माने की प्रेम कहानी कैसी हो सकती है? इस सवाल का जवाब ढूंढना है, तो एक बार अंतहीन ज़रूर देखनी चाहिये. सन २००९ में बनी इस बंगाली फ़िल्म को इस साल का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है. इससे ही इस फ़िल्म की काबिलियत समझ में आती है. जब राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा हुई तब श्रेया घोषाल को सब दो गीतों के लिए राष्ट्रीय सन्मान प्राप्त हुआ था. उन मे से एक मराठी फ़िल्म ’जोगवा’ के गाने ’जीव रंगला’ गाना था, तथा दूसरा गाना बंगाली फ़िल्म ’अंतहीन’ से ’फेरारी मोन’ के लिए था. मैं ने यह गाना इटरनेट पर ढूंढ कर सुना तो काफ़ी अच्छा लगा. तभी मैने फ़िल्म देखने का फ़ैसला किया था. जिस फ़िल्म को राष्ट्रीय सन्मान मिला है, उस मे कुछ तो बात होनी चाहिए. फ़िल्म की कथा एक ’रोमॅंटिक स्टोरी’ है और थोडी अजीब भी. जिस में नायक तथा नायिका एक दूसरे को जानते भी है और नहीं जानते भी! जिस में दोनों एक दूसरे से मोहब्बत करते है और नही करते भी! ऐसी अजीब कहानी लेकर अनिरूद्ध रॉय चौधरी ने इस फ़िल्म का निर्देशन किया है. यह एक प्रकार का इंटरनेट प्यार है. फ़िल्म के हिरो-हिरोईन यानी राहुल बोस और राधिका आपटे ने अपना किरदार बहुत अच्छी तरह से निभाया है. एक पुलिस अफ़सर तथा पत्रकार के बीच होनेवाला प्यार इस फ़िल्म मे दिखाया है. सहाय्यक अभिनेत्री के रोल में अपर्णा सेन और शर्मिला टागौर भी है. लेकिन ’प्राईम फ़ोकस’ तो अभिक (राहुल बोस) और ब्रिंदा (राधिका आपटे) पर ही रहता है. इस प्रेम कहानी का अंत थोडा सा ग़लत ही लगा. और यह लगना स्वाभाविक भी है, क्युंकी हम पारंपारिक प्रेम कहानी की चौकट में जो दबे हुए है. फ़िल्म के गीत बहुत ही अच्छे है. मैंने देखी हुई यह पहली ही बंगाली मूवी थी. वैसे सबटाईटल्स होने की वजह से समझने मे कोई दिक्कत नहीं हुई. बंगाली भाषा अन्य आर्य भाषियों को जल्दी समझ आ सकती है. शायद इस वजह से मैं आगे भी और बंगाली फ़िल्म देख सकू. एक बात तो मैं बताना चाहूंगा के, राधिका आपटे मूलत: पुणे की मराठी लड़की है, लेकिन उसने इस फ़िल्म में बंगाली संवाद अच्छी तरह से बोले है. इसी वजह से मराठियों को बंगाली समझ आने को अधिक दिक्कत नहीं होगी, यह मात्र समझ आया. ’अंतहीन’ को चार राष्ट्रीय सन्मान मिले है. अगर आप एक अच्छी रोमॅंटिक स्टोरी देखना चाहते है तो इस फ़िल्म को ज़रूर देखिये…

 

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