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Monthly Archives: जून 2011

मेरी तीन कॉमेडी फ़िल्में

विनोद ही मनोरंजन का सब से बड़ा साधन माना जाता है। मैं भी यही मानता हूं। अधिकतर लोग कॉमेडी फ़िल्में ही देखना पसंद करते हैं। हिंदी फ़िल्मजगत में कही बहारदार कॉमेडी फ़िल्में पिछले कई सालों में आ गई हैं। परेश रावल तथा राजपाल यादव जैसे कलाकारों ने कॉमेडी फ़िल्मों को नया आयाम प्राप्त करके दिया हैं। अगर कोई मुझसे कहे की तुम्हारी पसंद की तीन कॉमेडी फ़िल्में बताओ तो मैं इन तीनों को चुनुंगा-

१.      हंगामा

२.      अंदाज़ अपना अपना

३.      हेराफेरी

सन २००४ मे आयी ’हंगामा’ फ़िल्म मैने देखी हुई सब से कॉमेडी फ़िल्म है। जब यह फ़िल्म रीलीज हुई तब मैं पुणे में इंजिनियरिंग कॉलेज मे पढ़ता था। मुझे इसे थिएटर में देखने का नसीब हासील नहीं हुआ परंतु, होस्टेल पर दोस्तों के साथ मैने इस फ़िल्म का लुत्फ़ उठाया था। ज़्यादा हंसने से पेट दुखता है, ऐसा मैने सिर्फ़ सुना और देखा था। मगर महसूस पहली बार इस फ़िल्म ने कराया। प्रियदर्शन निर्देशित ’हंगामा’ इस साल बाक्स आफिस पर क़ाफ़ी चली थी। फिल्म में दिखाये घटनाक्रम इतनी अच्छी तरह से परदे पर पेश किये गये है, जिस से यह पता चलता है की यह फिल्म किसी कसे हुए निर्देशक ने निर्देशित की है। कॉमेडी फिल्मों मे माहिर प्रियदर्शन ने इसे क़ाफ़ी बारकाई से बनाया है। फिल्म के कलाकार परेश रावल, अक्षय खन्ना, रीमी सेन, आफ़ताब शिवदासानी, मनोज जोशी, शोमा आनंद, संजय नार्वेकर ने अपने कॉमेडी की बहार लाजवाब टाइमिंग से दिखाई है। ’पोच्चकोरू मोकुथी’ नामक मल्यालम फ़िल्म से यह फिल्म बनाई गयी थी। तथा इसी फ़िल्म का रीमेक तमिल में ’कोटीस्वरन मगल’ नाम से और तेलुगू में ’गोपाल राव गरी अम्मई’ नाम से भी हुआ था।

आमीर ख़ान ने बहुत ही कम कॉमेडी फ़िल्में की है। उन मे से ही एक है- ’अंदाज़ अपना अपना’। आमीर तथा सलमान ख़ान के फ़िल्मी करियर की बहुत ही पहले की फ़िल्म ’अंदाज़ अपना अपना’ थी। राजकुमार संतोषी की यह फ़िल्म मैं आज भी देखता हूं तो कभी भी बोर नहीं होता। हंस हंस के लोटपोट करने वाली फ़िल्मों में से ही यह एक फ़िल्म है। करिश्मा कपूर और रविना टंडन के करियर की भी यह बहुत शुरुआती फ़िल्म थी। चारों कलाकार कॉमेडी रूप में इसी फ़िल्म में दिखाई दिये। जब परेश रावल हिंदी फ़िल्मों में खलनायक के रूप में आते थे, उसी दौर की यह फ़िल्म थी। परेश रावल एक कॉमेडी खलनायक के रूप में और डबल रोल में इस फ़िल्म में दिखाई दिये। इन के अलावा शक्ती कपूर, विजू खोटे और ज्युनियर अजित इस फ़िल्म में अच्छे कॉमेडियन के रूप में नज़र आये। आमीर ख़ान तो मेरा सब से फेवरिट कलाकार है, इसलिए यह फ़िल्म भी मुझे सब से पसंद फ़िल्मों में शामिल होती है। इस फ़िल्म मे गीत आज भी मेरी ज़हन में बसे हुए है। राजकुमार संतोषी की सब से बेहतरीन फ़िल्मों में मैं इसे शामिल करना चाहूंगा।

तीसरी फ़िल्म है- हेरा फेरी। आज भी यह फ़िल्म ऑल टाईम फेरविट कॉमेडी फ़िल्मों में शामिल की जाती हैं। नैचुरल कॉमेडी फ़िल्में हिंदी फ़िल्मजगत में बहुत ही कम दिखाई देती है। इसी शृंखला में शामिल हुई यह एक फ़िल्म है। परेश रावल का बाबुराव गणपतराव आपटे का किरदार दर्शक कभी नहीं भुला सकते। परेश रावल के करियर में सब से बेहतरीन रोल मैं इसी रोल को कहुंगा। इसी कारणवश इस फ़िल्म की सिक्वेल ’फिर हेराफेरी’ भी सुपरहिट रही थी। अक्षय कुमार तथा सुनिल शेट्टी की इस मे पहले कई फ़िल्में आयी, मगर सभी ऍक्शन फ़िल्में थी। दोनो ऍक्शन कलाकार पहली बार एक कॉमेडी फ़िल्म में नज़र आये। इस फ़िल्म की सफलता की वजह से दोनों पर लगा ऍक्शन हिरो का सिक्का निकलने में काफ़ी मदद हुई। बाद में दोनों कई बार कॉमेडी फ़िल्मों में दिखाई दिए, तथा दोनों की कॉमेडी फ़िल्मे बाक्स आफिस पर अच्छा काम कर के गई। हर कलाकार के जीवन में कई फ़िल्में ’माईलस्टोन’ बन के रह जाती है। अक्षय, सुनिल तथा परेश के लिए ’हेराफेरी’ एक माईलस्टोन ही थी। प्रियदर्शन निर्देशित यह फ़िल्म मल्यालम सिनेमा ’रामोजी राव स्पीकिंग’ का रीमेक थी। इसी फ़िल्म को तमिल में ’अरंगेत्रा वेलाई’ नाम से बनाया जा चुका है।

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’ळ’ का शब्दप्रयोग

देवनागरी को भारत की राष्ट्रीय लिपी कहा जाता है. भारत की कई प्रमुख भाषायें इसी ’रस्मुलख़त’ में लिखी जाती है. जिस में भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत, तथा हिंदी, मराठी, नेपाली, कोंकणी आदि राष्ट्रीय भाषाएं भी शामील है. मतलब भारत की अधिकतम जनता इसी लिपी का प्रयोग अपनी भाषा लिखने के लिए करती हैं.

देवनागरी में ’ह’ के बाद आनेवाला व्यंजन है, ’ळ’. इस अक्षर का प्रयोग आज हिंदी ज़बान में नहीं किया जाता. देवनागरी लिपी इस्तेमाल करने के बावजूद ’ळ’ का प्रयोग हिंदी में क्युं नहीं किया जाता, ये सवाल आज भी मेरे मन में है. अगर संस्कृत की बात की जाए तो, ’ळ’ का प्रयोग केवल वेदों, उपनिषदों तथा पुरानों तक ही सिमित रखा गया है, ऐसा ही मालूम पडता है. वेदों के कई श्लोकों में ’ळ’ का उपयोग दिखाई पड़ता हैं. बोलचाल की संस्कृत में ’ळ’ को शायद निषिद्ध की माना गया है. मराठी तथा सभी जुनुबी हिंद (दक्षिण भारत) की ज़ुबानों की बात की जाए तो यह सभी भाषाएं ’ळ’ का उपयोग अपनी बोलचाल में करती है. यह माना जाता है की, संस्कृत ही सभी भारतीय ज़ुबानों की माता है. इसी वजह से संस्कृत के सभी अल्फाज़ तथा तलफ्फ़ुज़ (उच्चारण) भारत की भाषाओं में मौजुद है. लेकिन शायद ’ळ’ के बारें में यह नियम कतई लागू नहीं होता. हम हिंदी में ’तमिल’ और ’मल्यालम’ कहते है. असल में यह अल्फ़ाज़ वहां की ज़ुबानों में ’तमिळ’ और ’मल्याळम’ है. इस्तेमाल किए जानेवाले अक्षर भले ही अलग हो लेकिन उसका उच्चारण तो ’ळ’ ही होता है. अंग्रेजी में मराठी, कन्नड तथा तेलुगू भाषाओं के लिए यह लब्ज़ L (एल) तथा तमिळ और मल्याळम भाषाओं के लिए zh (ज़ेड़ एच) से दर्शाया जाता है. ’एल’ को हिंदी उच्चारण ’ल’ तथा ’ज़ेड़एच’ का हिंदी उच्चारण ’झ’ के किया जाता है. इसी कारणवश मूल अल्फ़ाज के तलफ़्फ़ुज़ हम कर नहीं पातें.

हाल ही का उदाहरण लिया जाए तो ’kanimozhi’ इस शब्द का उच्चारण हम ’कनिमोझी’ करते है. लेकिन यह बिल्कुल ग़लत हैं. इसे असल में ’कनिमोळी’ पढ़ा जाना चाहिए. मल्याळम में आए ’manichithratazhu’ नामक सिनेमा को हम हिंदीवाले ’मनिचित्रताझु’ से पढ़ते है. असल मे इसका उच्चारण ’मनिचित्रताळ’ है. मराठी भाषा की बात की जाए तो ’ण’ के अलावा ’ळ’ ही ऐसा एक लब्ज़ है, जो किसी भी शब्द के शुरुआत में नहीं आता. इसे किसी शब्द के बीच में या अंत में इस्तेमाल किया जाता है. जैसे केनेपाळ, वाळवंट, पोळी आदि. मराठी भाषा में किए ’ळ’ के उच्चारण को हिंदी में ’ल’ से बोला जाता है. दोनों ज़ुबानों की एकही देवनागरी लिपी होने के बावजूद एक अक्षर को दूसरे अक्षर में परावर्तित करने का ये पहला की मौका होगा! उदाहरण के तौर पर मराठी के ’काळे’ को हिंदी में ’काले’, ’टिळक’ को ’टिलक’, तथा ’कळवण’ को कलवण कहां जाता है.

हिंदी में केवल एक लब्ज़ ना इस्तेमाल किए जाने की वजह से इतने सारे शब्दों के उच्चारण हम भारतीय ग़लत तरिके से करते है. हमे अगर अपनी ज़बान और सुधारनी है तो इस बात को भी सुधारने की भी जरूरत है. ’ळ’ का प्रयोग अगर हिंदी में करना शुरू किया जाए तो शायद इस जुबान की अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं में होने वाली दूरी और कम हो सकती है.

 

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