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सातवाहन: महाराष्ट्र के निर्माता

सातवाहन… यह नाम मैने पहली बार छठी या सातवी कक्षा मे पढा होगा, लेकिन सिर्फ़ पढ़ाई के लिये ही! उसके बाद मुझे इस नाम से कोई लेनादेना नहीं पडा. लेकिन, जब महाराष्ट्र के कई किलों की सफ़र की तब ऐसा एहसास हुआ की, सातवाहन के बारे में जानकारी होनी ही चाहिये. आज भी कई मराठी तथा महाराष्ट्रीय लोगों की सातवाहन साम्राज्य के बारे में मालूम नहीं है.
Satvahan empire map (Wikipedia)
मैं नाशिक में रहता हू. यहां का एक सुप्रसिद्ध पहाड़ है- पांडव लेणी. नाशिक के अधिकतम लोग, युवक यही कहते है की, यह पांडव गुंफाये महाभारत युग की है और वे पांडवों ने बनाई है! ऐसा ही उत्तर मुझे मेरे शिवनेरी किलें की गुंफायें देखने के बाद मिला था. उनकी नाम की वजह से मैने यकीन कर लिया. जब पांडव गुफाओं के यहा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का लगा हुआ बोर्ड पढा तो ज़्यादा कुछ समझ में नहीं आया! उस बोर्ड पर पांडव गुंफाओं का इतिहास लिखा हुआ है और उसमें सातवाहन का भी उल्लेख है. ऐसे उल्लेख मुझे कई जगह पढ़ने को मिले. फिर मैने ठान ली की सातवाहनों के बारे में सबकुछ जानकारी हासिल कर के ही रहूंगा. इसी वजह से मुझे महाराष्ट्र का एक छिपा इतिहास ज्ञात हुआ. रा. श्री. मोरवंचीकर की ’सातवाहन कालीन महाराष्ट्र’ नामक मराठी किताब मैने पढ़ी. इस के अलावा इंटरनेटपर सातवाहनों के बारे में कई तरह की जानकारी प्राप्त की.
इसवी सन पूर्व पहली शताब्दी के दरमियां महाराष्ट्र में शक तथा क्षत्रप तथा क्षहरात वंशीय राजाओं की हुकुमत थी. वे मूलत: मंगोलिया के है. यह वही मंगोलिया है जिसने चंगेज़ ख़ान नामक हैवान को जन्म दिया था. शक साम्राज्य बहुत ही जुल्मी साम्राज्य था. इसे खत्म करने के लिये छिमुक छातवाहन नामक ब्राम्हण राजा ने स्वराज्य की स्थापना की. यही सातवाहन साम्राज्य है. लेकिन, शकों का साम्राज्य बहुत ही विशाल था. उसे खत्म करने के लिये सातवाहनों की बीस नस्लें चली गयी. बिसवां राजा था गौतमीपुत्र सातकर्णी. उस जमाने में सातवाहन राजा अपने माता का नाम लगाते थे. इस ढंग की मातृसत्ताक पद्धती सातवाहन चलाते थे. गौतमीपुत्र गौतमी बलश्री नामक राणी के पुत्र थे. वे राजा बने तब सातवाहन साम्राज्य बहुत ही छोटा था. वे सातारा के नज़दिक कही अपना राज्य चलाते थे. गौतमीपुत्र ने लगातार बीस साल तक शकों से संघर्ष किया. अपनी लष्करी ताकद बढायी और अंतिमत: नाशिक के गोवर्धन के नज़दिक शक राजा नहपान को पराजित कर दिया. महाराष्ट्र के इतिहास में यह सबसे बड़ा युद्ध था. इस युद्ध के बाद सातवाहन का उत्कर्ष शुरू हुआ. पुणे जिलें मे स्थित जुन्नर शहर शकों की राजधानी थी और एक बडा व्यापारी केंद्र भी था. उसपर सातवाहनों ने कब्जा कर लिया. सातवाहन यह महाराष्ट्र का पहला स्वकिय साम्राज्य था. इस राज्य का सही उत्कर्ष उनके कारदिर्दगी में ही शुरू हुआ. औरंगाबाद जिलें में स्थित पैठण शहर सातवाहनों की राजधानी थी. उसे सातवाहन काल में प्रतिष्ठाण कहा करते थे. इस के अलावा कलियान (कल्याण), सोपारा (नालासोपारा), नासिक (नाशिक), भोगवर्धन (भोकरदन), तगर (तेर), करहाटक (कऱ्हाड), नेवासा यह शहर सातवाहन काल में हरेभरे हो गये. सातवाहनों ने सह्याद्री के पर्वतों में कई किलों की निर्मिती की, घाट बनाये, बौद्ध भिक्खुं के लिये गुंफाये बनाई.
उपर लिखित शहरो में उत्खनन के दौरान सातवाहनों का इतिहास सामने आया है. उन के कई राजाओं के सिक्के इस दौरान प्राप्त हुये. जुन्नर में स्थित नाणेघाट सातवाहन काल में बनाया गया था. प्राचीन घाट निर्मिती का तथा स्थापत्य अभियांत्रिकी का वह एक उत्तम नमूना माना जाता है. जुन्नर परिसर में हमें कई बौद्ध गुंफायें भी नज़र आती है. सातवाहन कालीन ऐसी गुंफायें पुणे जिले में भाजे, कार्ले, कण्हेरी, बेडसे यहां भी देखी जा सकती है. अजिंठा की गुंफायें भी सातवाहनों ने बनायी थी. महाराष्ट्र के कई किलों का अज्ञात इतिहास सातवाहन से जुड़ा हुआ है. नाणेघाट के पहारेदार माने जानेवाले जीवधन, चावंड तथा हडसर यह किलें सातवाहन काल में ही बनाये गये थे.
इस तरह महाराष्ट्र की संस्कृती पर सातवाहनों का बडा प्रभाव पडा है. लेकिन इस की जानकारी खुद मराठी लोगों को ही बहुत कम है, ऐसा मुझे समझ मे आया. अभी भी मै सातवाहनों का इतिहास खोज रहा हूं. मैने फेसबुक पर ’सातवाहनकालीन महाराष्ट्र’ नामक पेज भी बनाया है. इससे कई अभ्यासक जुडे हुए है. मुझे ऐसा लगता है की, इतिहास ही एक ऐसी चीज़ है जो हम नई समझ के सीखते है. मुझे यकीन है, की सातवाहनों का यह गौरवशाली इतिहास मै ज़रूर नये पाठकों के सामने लाने में कामयाब हुंगा.
जय महाराष्ट्र…!!!
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किलों का राजा: राजगड

Imageछत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी रहा किला राजगड के बारे में मुझे हमेशा उत्सुकता रही थी की यह किला कैसा होगा? तारिख़ के पन्नों में राजगड का वर्णन मैने सिर्फ़ पढा था. मगर देखने का सौभाग्य सन २०१२ में हासिल हुआ. दैनिक दिव्य मराठी को मैं इसलिये धन्यवाद देना चाहूंगा की उनकी वजह से मेरा यह सपना हुआ पूरा हुआ! दिव्य मराठी में मेरी लेख शृंखला किलों के विषय में शुरू होने वाली थी. इस के लिये उन्हों ने पहले ही रायगड़ तथा राजगड के विषय पर ही लेखों की मांग की. लेकिन मेरे पास दोनो लेख तैयार नहीं थें. इसलिये मैं और मेरा भाई दोनों पिछले साल दिसंबर में राजगड किलें की सैर करने निकल पड़े.

 

मैने यह तो सुना था की तोरणा किला तथा राजगड दोनों एक दूसरे के बहुत ही नज़दीक है. पिछले साल ही हमने तोरणा किले की भी सैर की थी मगर बारिश के मौसम में धुंद होने की वजह से तोरणा ही ठिक से देख नहीं पाए, राजगड तो दूर की बात थी. इस बार वातावरण साफ़ था. किले का वर्णन हमने इतिहास के किताबों में तो पढ़ा था तथा इंटरनेट से भी कुछ जानकारी हासिल की थी. किला एक दिन में देखना बहुत ही मुश्किल था. इसलिये सुबह साढेछह बजे ही पुणे से राजगड की ओर चल पडे. ठंड का मौसम होने की वजह से हवा में बहुत सर्द भरी हुई थी. पुणे के नज़दीक ही सिंहगड पहुंचते पहुंचते एक घंटा चला गया. तब तक सूरज काफ़ी उपर आ पहुंचा था. रविवार होने की वजह हे हमेशा की तरह सिंहगड पर युवतीयों की काफ़ी भीड़ थी. वे रविवार को यहां क्या करने आती है, इसका इल्म अब सारे पुणे को हो चुका है! सिंहगड से दाई तरफ़ जानेवाले रास्तें पर राजगड करीब तीस किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन यह रास्ता पहाडों के बीच से गुजरता है तथा कई घाट इस रास्ते में है. इसी कारणवश यहां से राजगड पहुंचने के लिये एक घंटा तो लगता ही है. जिस पहाड़ को पार करते वक्त सिंहगड. दृष्टी से दूर जाता है, वही राजगड तथा तोरणा किला नज़र आता है! राजगड और तोरणा की यह जोडी दूर से अद्भूत नज़र आती है. वैसे तोरणा किला वेल्हे, जो तहसील का स्थान है उस के करीब ही है. लेकिन राजगड के नज़दीक कोई बड़ा गांव नहीं है. अगर किसी सरकारी बस से आना हो तो कई दूर तक पैदल चलना पड़ता है. वेल्हे तहसील में इसी रास्ते पर ’पाबे’ नामक गांव से दो रास्ते निकलते हैं. बांया राजगड की ओर और दांया रास्ता तोरणा की तरफ़ जाता है. इस जगह से करीब दस बारह किलोमीटर की दूरी पर राजगड किला है. रास्ते पर चलते चलते राजगड का अनोखा दर्शन हम ले सकते है. इस रास्ते पर आखरी गांव है, भोंसलेवाडी. इस रास्ते से राजगड का तल दोनतीन कि.मी. की दूरी पर है. चलते चलते राजगड की अद्भूत उंचाई नापते नापते ही हम चलते है. मराठों का गौरवशाली इतिहास आंखों के सामने ख़ड़ा होता है. छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी कैसी होनी चाहिये, इस का उत्तर हमें और खोजने की कतई जरूरत नहीं होती.

 

किले के तल से शिखर तक का सफ़र पार करने के लिये करीब डेढ़ घंटे का समय तो लग ही जाता है. इस रास्ते पर आधा सफ़र पार करने पर पत्थरों की सीढीयां नज़र आती है. एक एक पैड़ी एक आदमी जितनी लंबी है. यह पत्थर इतने उपर कैसे लाए गए होंगे, इस का हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते. किले के शिखर पर पहुंचने से पहले मुख्य दरवाज़ा दिखाई देता है. आज भी यह दरवाज़ा काफ़ी मज़बूत स्थिती मे है. राजगड किले के चार प्रमुख भाग हैमुख्य किला (जिसे बालेकिला कहते है), संजीवनी माची, सुवेळा माची तथा पद्मावती माची. राजगड का सबसे उंचा भाग बालेकिला ही है. पुराने जमाने में यही मुख्य किला था. उसे मुंरूंबदेव का पहाड़ कहा करते थे. लेकिन शिवाजी महाराज ने इस पर्वत पर विजय हासिल करने के पश्चात सुवेळा, संजीवनी तथा पद्मावती माची का निर्माण किया और यह किला बहुत बड़ा दिखने लगा. किले की दाई ओर संजीवनी माची है. यह भाग करीब दोढाई किलोमीटर का है. आज भी वह सुस्थिती मे दिखाई देता है. यहा से भाटघर बांध तथा तोरणा किला साफ़ दिखाई देता है. तोरणा की तरफ़ जानेवाला रास्ता यही से निकलता है. बालेकिला के पिछली बाजू में सुवेळा माची है. इस माची पर हम कई स्थल देख सकते है. हस्तीप्रस्तर तथा यहा से आने के लिए और एक कठिन दरवाज़ा इसी माची पर है. यह दो किलोमीटर की माची है. माची के अंतिम शिखर से पुरंदर तथा वज्रगड दिखाई देते है. सुवेळा माची से पद्मावती माची की ओर जाने के लिए बालेकिला के दाई तरफ़ से जाना पड़ता है. इसी रास्ते पर नीचे की तरफ़ जाने के लिए एक और द्वार है जिसे ’गुंजवणे दरवाजा’ कहते है. यह गुंजवणे गांव से उपर आता है.

 

छोटी होने के बावजूद पद्मावती माची पर देखने लायक कई जगह है. सदर, पद्मावती मंदिर, पेयजल के ठिकान, चोर दरवाज़ा, पद्मावती तलाव इस माची पर स्थित है. यही सामने की तरफ़ सिंहगड किला दिखाई देता है. यहा से बालेकिला की ओर जाने के लिए पिछे जाना पड़ता है. रास्ते पर बड़ा ध्वजस्तंभ लगाया हुआ है. बालेकिला की ओर जानेवाला रास्ता झाडियों से निकलता है. यह रास्ता राजगड का सबसे कठिन रास्ता होगा. आज यहा पर दोनो तरफ़ रेलिंग लगाई हुई है, इसलिए यहा की चढा़ई सुलभ हो चुकी है. कभी कभी कल्पना करता हूं की, शिवकाल में यहा से लोग कैसे आते जाते रहे होंगे? यह रास्ता पार करने पश्चात हम बालेकिला के मुख्य दरवाज़े पर पहुंचते है. यही से सामने सुवेळा माची नज़र आती है. बालेकिला का परिसर इतना विस्तीर्ण तो नही है. यहा कई जगह महलों के अवशेष नज़र आते है. दाई तरफ़ ब्रम्हर्षी ऋषी का एक छोटा मंदिर भी दिखाई देता है. बालेकिला इस जगह का सबसे उंचा स्थान होने की वजह से यहां से पूरा मावळ इलाका एक ही दृष्टी में सहज समा जाता है. आजुबाजु के सभी किलें यहां से नज़र आते है. शिवचरित्र का पुनर्संशोधन करने का मन करता है. यही से मराठा साम्राज्य की यह पहली राजधानी कितनी मनमोहक रही होंगी, इसका अंदाज़ा आ सकता है.

 

शिवाजी महाराज का सबसे अधिक वास्तव इसी किले पर था. इसलिए शिवप्रेमीओं के लिए यह किला एक तीर्थक्षेत्र की तरह है. अगर शिवाजी महाराज को जानना है तो इस किलें को एक बार ज़रूर भेंट देना मत भूलिए

 

जय शिवाजी, जय भवानी…!!

 

किलों का राजा: राजगड

 

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