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मेरी तीन कॉमेडी फ़िल्में

विनोद ही मनोरंजन का सब से बड़ा साधन माना जाता है। मैं भी यही मानता हूं। अधिकतर लोग कॉमेडी फ़िल्में ही देखना पसंद करते हैं। हिंदी फ़िल्मजगत में कही बहारदार कॉमेडी फ़िल्में पिछले कई सालों में आ गई हैं। परेश रावल तथा राजपाल यादव जैसे कलाकारों ने कॉमेडी फ़िल्मों को नया आयाम प्राप्त करके दिया हैं। अगर कोई मुझसे कहे की तुम्हारी पसंद की तीन कॉमेडी फ़िल्में बताओ तो मैं इन तीनों को चुनुंगा-

१.      हंगामा

२.      अंदाज़ अपना अपना

३.      हेराफेरी

सन २००४ मे आयी ’हंगामा’ फ़िल्म मैने देखी हुई सब से कॉमेडी फ़िल्म है। जब यह फ़िल्म रीलीज हुई तब मैं पुणे में इंजिनियरिंग कॉलेज मे पढ़ता था। मुझे इसे थिएटर में देखने का नसीब हासील नहीं हुआ परंतु, होस्टेल पर दोस्तों के साथ मैने इस फ़िल्म का लुत्फ़ उठाया था। ज़्यादा हंसने से पेट दुखता है, ऐसा मैने सिर्फ़ सुना और देखा था। मगर महसूस पहली बार इस फ़िल्म ने कराया। प्रियदर्शन निर्देशित ’हंगामा’ इस साल बाक्स आफिस पर क़ाफ़ी चली थी। फिल्म में दिखाये घटनाक्रम इतनी अच्छी तरह से परदे पर पेश किये गये है, जिस से यह पता चलता है की यह फिल्म किसी कसे हुए निर्देशक ने निर्देशित की है। कॉमेडी फिल्मों मे माहिर प्रियदर्शन ने इसे क़ाफ़ी बारकाई से बनाया है। फिल्म के कलाकार परेश रावल, अक्षय खन्ना, रीमी सेन, आफ़ताब शिवदासानी, मनोज जोशी, शोमा आनंद, संजय नार्वेकर ने अपने कॉमेडी की बहार लाजवाब टाइमिंग से दिखाई है। ’पोच्चकोरू मोकुथी’ नामक मल्यालम फ़िल्म से यह फिल्म बनाई गयी थी। तथा इसी फ़िल्म का रीमेक तमिल में ’कोटीस्वरन मगल’ नाम से और तेलुगू में ’गोपाल राव गरी अम्मई’ नाम से भी हुआ था।

आमीर ख़ान ने बहुत ही कम कॉमेडी फ़िल्में की है। उन मे से ही एक है- ’अंदाज़ अपना अपना’। आमीर तथा सलमान ख़ान के फ़िल्मी करियर की बहुत ही पहले की फ़िल्म ’अंदाज़ अपना अपना’ थी। राजकुमार संतोषी की यह फ़िल्म मैं आज भी देखता हूं तो कभी भी बोर नहीं होता। हंस हंस के लोटपोट करने वाली फ़िल्मों में से ही यह एक फ़िल्म है। करिश्मा कपूर और रविना टंडन के करियर की भी यह बहुत शुरुआती फ़िल्म थी। चारों कलाकार कॉमेडी रूप में इसी फ़िल्म में दिखाई दिये। जब परेश रावल हिंदी फ़िल्मों में खलनायक के रूप में आते थे, उसी दौर की यह फ़िल्म थी। परेश रावल एक कॉमेडी खलनायक के रूप में और डबल रोल में इस फ़िल्म में दिखाई दिये। इन के अलावा शक्ती कपूर, विजू खोटे और ज्युनियर अजित इस फ़िल्म में अच्छे कॉमेडियन के रूप में नज़र आये। आमीर ख़ान तो मेरा सब से फेवरिट कलाकार है, इसलिए यह फ़िल्म भी मुझे सब से पसंद फ़िल्मों में शामिल होती है। इस फ़िल्म मे गीत आज भी मेरी ज़हन में बसे हुए है। राजकुमार संतोषी की सब से बेहतरीन फ़िल्मों में मैं इसे शामिल करना चाहूंगा।

तीसरी फ़िल्म है- हेरा फेरी। आज भी यह फ़िल्म ऑल टाईम फेरविट कॉमेडी फ़िल्मों में शामिल की जाती हैं। नैचुरल कॉमेडी फ़िल्में हिंदी फ़िल्मजगत में बहुत ही कम दिखाई देती है। इसी शृंखला में शामिल हुई यह एक फ़िल्म है। परेश रावल का बाबुराव गणपतराव आपटे का किरदार दर्शक कभी नहीं भुला सकते। परेश रावल के करियर में सब से बेहतरीन रोल मैं इसी रोल को कहुंगा। इसी कारणवश इस फ़िल्म की सिक्वेल ’फिर हेराफेरी’ भी सुपरहिट रही थी। अक्षय कुमार तथा सुनिल शेट्टी की इस मे पहले कई फ़िल्में आयी, मगर सभी ऍक्शन फ़िल्में थी। दोनो ऍक्शन कलाकार पहली बार एक कॉमेडी फ़िल्म में नज़र आये। इस फ़िल्म की सफलता की वजह से दोनों पर लगा ऍक्शन हिरो का सिक्का निकलने में काफ़ी मदद हुई। बाद में दोनों कई बार कॉमेडी फ़िल्मों में दिखाई दिए, तथा दोनों की कॉमेडी फ़िल्मे बाक्स आफिस पर अच्छा काम कर के गई। हर कलाकार के जीवन में कई फ़िल्में ’माईलस्टोन’ बन के रह जाती है। अक्षय, सुनिल तथा परेश के लिए ’हेराफेरी’ एक माईलस्टोन ही थी। प्रियदर्शन निर्देशित यह फ़िल्म मल्यालम सिनेमा ’रामोजी राव स्पीकिंग’ का रीमेक थी। इसी फ़िल्म को तमिल में ’अरंगेत्रा वेलाई’ नाम से बनाया जा चुका है।

 

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अजब प्रेम की गज़ब कहानी… अंतहीन (ओंतोहीन, অন্তহীন)

नये ज़माने की प्रेम कहानी कैसी हो सकती है? इस सवाल का जवाब ढूंढना है, तो एक बार अंतहीन ज़रूर देखनी चाहिये. सन २००९ में बनी इस बंगाली फ़िल्म को इस साल का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है. इससे ही इस फ़िल्म की काबिलियत समझ में आती है. जब राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा हुई तब श्रेया घोषाल को सब दो गीतों के लिए राष्ट्रीय सन्मान प्राप्त हुआ था. उन मे से एक मराठी फ़िल्म ’जोगवा’ के गाने ’जीव रंगला’ गाना था, तथा दूसरा गाना बंगाली फ़िल्म ’अंतहीन’ से ’फेरारी मोन’ के लिए था. मैं ने यह गाना इटरनेट पर ढूंढ कर सुना तो काफ़ी अच्छा लगा. तभी मैने फ़िल्म देखने का फ़ैसला किया था. जिस फ़िल्म को राष्ट्रीय सन्मान मिला है, उस मे कुछ तो बात होनी चाहिए. फ़िल्म की कथा एक ’रोमॅंटिक स्टोरी’ है और थोडी अजीब भी. जिस में नायक तथा नायिका एक दूसरे को जानते भी है और नहीं जानते भी! जिस में दोनों एक दूसरे से मोहब्बत करते है और नही करते भी! ऐसी अजीब कहानी लेकर अनिरूद्ध रॉय चौधरी ने इस फ़िल्म का निर्देशन किया है. यह एक प्रकार का इंटरनेट प्यार है. फ़िल्म के हिरो-हिरोईन यानी राहुल बोस और राधिका आपटे ने अपना किरदार बहुत अच्छी तरह से निभाया है. एक पुलिस अफ़सर तथा पत्रकार के बीच होनेवाला प्यार इस फ़िल्म मे दिखाया है. सहाय्यक अभिनेत्री के रोल में अपर्णा सेन और शर्मिला टागौर भी है. लेकिन ’प्राईम फ़ोकस’ तो अभिक (राहुल बोस) और ब्रिंदा (राधिका आपटे) पर ही रहता है. इस प्रेम कहानी का अंत थोडा सा ग़लत ही लगा. और यह लगना स्वाभाविक भी है, क्युंकी हम पारंपारिक प्रेम कहानी की चौकट में जो दबे हुए है. फ़िल्म के गीत बहुत ही अच्छे है. मैंने देखी हुई यह पहली ही बंगाली मूवी थी. वैसे सबटाईटल्स होने की वजह से समझने मे कोई दिक्कत नहीं हुई. बंगाली भाषा अन्य आर्य भाषियों को जल्दी समझ आ सकती है. शायद इस वजह से मैं आगे भी और बंगाली फ़िल्म देख सकू. एक बात तो मैं बताना चाहूंगा के, राधिका आपटे मूलत: पुणे की मराठी लड़की है, लेकिन उसने इस फ़िल्म में बंगाली संवाद अच्छी तरह से बोले है. इसी वजह से मराठियों को बंगाली समझ आने को अधिक दिक्कत नहीं होगी, यह मात्र समझ आया. ’अंतहीन’ को चार राष्ट्रीय सन्मान मिले है. अगर आप एक अच्छी रोमॅंटिक स्टोरी देखना चाहते है तो इस फ़िल्म को ज़रूर देखिये…

 

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